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छंद सलिला : सॉनेट
तिरंगा
ध्वज न केवल मैं तिरंगा
चिरंतन बलिदान हूँ मैं
लोक के हित सदा बेकल
सनातन अरमान हूँ मैं
सद्भाव हूँ मैं, शांति हूँ
चाहता सबका भला नित
नव सृजन की क्रांति भी हूँ
साध्य केवल लोक का हित
हरितिमा हूँ, भाग्य-भाषा
अहर्निश उन्नति-परिश्रम
स्वेद उपजी नवल आशा
जन प्रगति का चक्र अनुपम
आत्म जेता लो न पंगा
ध्वज न केवल मैं तिरंगा
(शेक्सपीरियन सॉनेट)
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छंद सलिला : (अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट)
मुखिया
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नव मुखिया को नमन है
सबके प्रति समभाव हो
अधिक न न्यून लगाव हो
हर्षित पूरा वतन है
भवन-विराजी है कुटी
जड़ जमीन से है जुड़ी
जीवटता की है धनी
धीरज की प्रतिमा धुनी
अग्नि परीक्षा है कड़ी
दिल्ली के दरबार में
सीता फिर से है खड़ी
राह न किंचित सहज है
साथ सभी का मिल सके
यह संयोग न महज है
२२-७-२०२२
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छंद सलिला : (अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट)
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प्रदोष रहिए खुशी से
हमेशा करें व्रत-कथा
जीतें हर बाधा-व्यथा
आशीष मिले शिवा से
प्रदोष रचिए हमेशा
अठ-पच कल मिल खेलिए
सुख-दुख सम चुप झेलिए
विनम्र रहिए हमेशा
गुरु लघु हो न पदांत में
आस्था मिले न भ्रांत में
रखिए शांति दिनांत में
चौदह पद सॉनेट में
चौ चौ चौ दो या रहे
चौ चौ त्रै त्रै पद सदा
२२-७-२०२२
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नवगीत
तुम्हें प्रणाम
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मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
सूक्ष्म काय थे,
चित्र गुप्त विधि ,
अणु-परमाणु-विषाणु विष्णु हो धारे तुमने।
कोष-वृद्धि कर
'श्री' पाई है।
जल-थल--नभ पर
कीर्ति-पताका
फहराई है।
पंचतत्व तुम
नाम अनाम।
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
भू-नभ
दिग्दिगंत यश गाते।
भूत-अभूत तुम्हीं ने नाते, बना निभाए।
द्वैत दिखा,
अद्वैत-पथ वरा।
कहा प्रकृति ने
मनुज है खरा।
लड़, मर-मिटे
सुरासुर लेकिन
मिलकर जिए
रहे तुम आम।
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
धरा-पुत्र हे!
प्रकृति-मित्र हे!
गही विरासत हाय! न हमने, चूक यही।
रौंद प्रकृति को
'ख़ास' हो रहे।
नाश बीज का
आप बो रहे।
खाली हाथों
जाना फिर भी
जोड़ मर रहे
विधि है वाम।
२२-७-२०१९
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मुक्तक
दीप्ति तम हरकर उजाला बाँट दे
अब न शर्मा शतक से तम छांट दे
दस दिशाओं से सुनो तुम तालियाँ
फाइनल लो जीत धोबीपाट दे
*
एकता है तो मिलेगी विजय भी
गेंद की गति दिशा होगी मलय सी
खाए चक्कर ब्रिटिश बल्लेबाज सब
तिरंगा फ़हरा सके, हो जयी भी
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महिला क्रिकेट के दोहे
स्मृति का बल्ला चला, गेंद हुई रॉकेट.
पलक झपकते नभ छुए, गेंदबाज अपसेट.
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कैसे करती अंगुलियाँ, पल में कहो कमाल.
मात दे रही पेस से, झूलन मचा धमाल.
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दीप्ति कौंधती दामिनी, गिरे उड़ा दे होश.
चमके दमके निरंतर, कभी न रीते कोश.
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पूनम उतरी तो हुई, अजब अनोखी बात.
घिरे विपक्षी तिमिर में, कहें अमावस तात.
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शर संधाना तो हुई, टीम विरोधी ढेर.
मंधाना के वार से, नहीं किसी की खैर.
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२२.७.१७